स्वामी विवेकानंद बायोग्राफी(Swami Vivekananda Biography In Hindi): आज के समय में अगर हम एक महान व्यक्ति की बात करें तो हमारे मन में सबसे पहला नाम स्वामी विवेकानंद जी का आता है, क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में बहुत से महान कार्य किए है जिन कारणों से आज के समय में इनको हर कोई जानता है और छोटे से छोटे बच्चे को भी इनके बारे में बताया जाता है जिससे इनके कुछ गुण आने वाली पीढ़ियों में आए।
बहुत से लोग है, जो की इनको अपना गुरु मानते है और अपने जीवन मे इनके कुछ कार्य करके अपना जीवन भी संभालना चाहते है और अगर आप भी इनके बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो आज मैं आपको अपने लेख में स्वामी विवेकानंद बायोग्राफी(Swami Vivekananda Biography In Hindi) के अंतर्गत इनसे जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ सांझा करूंगा।
Swami Vivekananda Biography In Hindi
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कलकत्ता का एक बहुत ही सामान्य परिवार में हुआ था, स्वामी जी के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था, जिनसे वह बहुत ही अधिक प्रभावित थे स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
इन्होंने अपने गुरु की मृत्यु के पश्चात ब्रिटिश की सभी गतिविधियों का संपूर्ण अध्ययन किया यह अपनी गुरु की मृत्यु के पश्चात पूर्ण रूप से टूट गए थे जिस कारण यह भारतीय महादीप का दौरा करने के लिए घर से निकल गए थे। स्वामी विवेकानंद एक सभा में शामिल होने के लिए शिकागो गए थे, जिस सभा में इन्होंने भारत के लोगो का प्रतिनिधित्व भी किया था और इस सभा में इन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार बहुत किया और इस सभा का नाम विश्व धर्म सभा सम्मेलन था ।
स्वामी विवेकानंद जी का शुरुआती जीवन
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता शहर के एक बहुत ही सामान्य परिवार में हुआ था, इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था, इनके पिता कलकत्ता हाईकोर्ट के बहुत हीं मशहूर वकील थे, कलकत्ता शहर के सबसे अच्छे वकीलों में इनका नाम शामिल था।
इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, यह धार्मिक विचारों वाली महिला थी स्वामी विवेकानंद जी का अधिकतर समय भगवान शिव की पूजा करने में ही व्यतीत हो जाता था। यह बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव के व्यक्ति थे और साथ में यह पढ़ाई में बहुत ही कुशल और बुद्धिमान थे। विवेकानंद जी के घर में भक्ति और पूजा पाठ का बहुत अच्छा माहौल था ,जिस कारण इनकी रुचि पूजा अर्चना में बहुत तेजी से बढ़ने लगी ।
पूरा नाम | स्वामी विवेकानंद जी |
निक नाम | विवेक |
जन्म दिनांक | 12 जनवरी 1863 |
जन्म स्थान | कलकत्ता |
मातृभाषा | हिंदी |
जाति | ब्राह्मण |
धर्म | हिंदू |
स्वामी विवेकानंद शैक्षणिक योग्यता
स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही पढ़ाई में बहुत ही कुशल और बुद्धिमान थे, यह शुरुआत से ही खूब किताबें पढ़ा करते थे, जिस कारण इनको किताबे पढ़ने में रुचि बढ़ने लगी फिर इन्होंने ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मेट्रोलिटन संस्थान में अपना दाखिला करवा लिया और अच्छे से पढ़ाई करने लगे इनको बचपन में कुछ विषयो में अधिक रुचि थी जैसे- इतिहास, कला आदि। स्वामी विवेकानंद जी को हिंदू शास्त्रों में बचपन से ही बहुत रुचि थी जैसे- रामायण, महाभारत, भगवदगीता, वेद इत्यादि शास्त्रों को यह पढ़ा करते थे ।
1884 में इन्हे कला स्नातक की डिग्री भी मिल गई , अपनी पढ़ाई करते रहने के साथ साथ इन्होंने बंगला साहित्य भी सीखा। स्वामी विवेकानंद जी ने सस्पेंसर की किताब एजुकेशन का बंगाली में अनुवाद भी किया था। स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी डिग्री हासिल करने से पहले ललित कला की परीक्षा को भी पास किया था।
स्वामी विवेकानंद जी का सम्मेलन एवं सभा
स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत सारे धर्म और सभा सम्मेलन का आयोजन किया था लेकिन उनका अमेरिका का धर्म सम्मेलन बहुत ही ज्यादा खास था उसकी खास वजह यह थी की जब वह भाषण देने पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिसने सभी का मन मोह लिया और जोर जोर से ताली बजाने लगे।
वह शब्द थे – मेरे प्यारे अमेरिकी भाईयो और बहनों आपने जिस उदर भाव से हम सभी लोगो का स्वागत किया उसके प्रति आभार प्रकट करने के लिए मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है मैं अपनी और अपने देश की तरफ से आप सभी लोगो का धन्यवाद व्यक्त करता हूं। मुझे एक ऐसे देश के नागरिक होने का बहुत अभिमान है जिसने समस्त देशों के उत्पीड़ितो और शरणार्थियों को आश्रय दिया है ।
गुरु के प्रति स्वामी विवेकानंद की निष्ठा
स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस का बहुत आदर करते थे और वह अपने गुरु की सेवा भी निस्वार्थ भाव से किया करते थे। एक बार इनके मित्र ने गुरु के प्रति घृणा दिखाते हुए अपनी नाक सिकोडी जिससे गुरु जी को बहुत गुस्सा आ गया, जिससे स्वामी जी ने गुरुदेव के बिस्तर के पास पड़े रक्तकप आदि उठाकर फेंकते थे स्वामी विवेकानंद जी ने अपना संपूर्ण जीवन गुरु के प्रति समर्पित कर दिया।
यह अपने गुरु की सेवा में प्रतिपल लगे रहते थे स्वामी जी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमे धर्म या जाति के लोगो में किसी भी प्रकार का कोई भेद भाव न रहे ।स्वामी विवेकानंद जी ने वेदांता के सिद्धांतो को इसी रूप में रखा है ।
स्वामी विवेकानंद की मुख्य यात्रा
स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात 24 वर्ष की उम्र में ही संन्यासी जीवन में प्रवेश कर दिया था और उन्होंने साधारण कपड़े त्यागकर गेरुवा वस्त्र धारण कर लिए और पैदल ही पूरे भारत में यात्रा की स्वामी जी ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और सभी शहरों का दौरा करते समय वह शिकागो में पहुंचे। जहां पर यह एक सभा में सम्मिलित हुए थे इनके ज्ञान और बुद्धिमत्ता को देखते हुए अमेरिका के मीडिया ने इन्हे साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया था अमेरिका में स्वामी जी ने रामकृष्ण मिशन के कई मंडल स्थापित किए यह हमेशा गरीबों की मदद करते थे जिस कारण इन्हे गरीबों का सेवक भी कहा जाता था ।
स्वामी विवेकानंद जी के प्रमुख वचन
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकर खाकर ही होता है ।
- उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक आपको लक्ष्य प्राप्त न हो जाए ।
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है ।
- दिल और दिमाग के टकराव में सिर्फ दिल की सुनो ।
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है ।
विवेकानंद जी की मृत्यु
स्वामी विवेकानंद जी पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध थे , स्वामी विवेकानंद जी के शिष्यों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपनी दिनचर्या को नहीं बदला और दो से तीन घंटे तक ध्यान किया भगवान की पूजा अर्चना करते रहे और 4 जुलाई 1902 को वह ध्यानवस्था में ही परलोक सिधार गए। बेलूर के गंगा के तट पर चंदन की चिता पर उनका अंतिम संस्कार किया गया स्वामी विवेकानंद जी बहुत शिष्यों को शिक्षित करते थे उन्हीं शिष्यों ने जिस घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ वही पर स्वामी विवेकानंद जी का मंदिर बनवा दिया।
निष्कर्ष
आज के आर्टिकल में हमने आपको स्वामी विवेकानंद बायोग्राफी(Swami Vivekananda Biography In Hindi) के बारे में जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है हमें उम्मीद है की हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको पसंद आई होगी