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Meera Bai Biography In Hindi: आज कल के इस बदलते युग में न सिर्फ समय बदल रहा है बल्कि हर एक व्यक्ति अपनी संस्कृति और भारत के पुराने रीति रिवाजों से दूर जाता जा रहा है, जिस वजह से ज्यादातर लोगो को सिर्फ किताबी ज्ञान है और उनको शास्त्रों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
यही नहीं बल्कि वर्तमान में ज्यादातर लोग भगवान की पूजा नही करते है और धीरे धीरे वह सारे लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है जो की हमारे लिए और हमारे आने वाले समय के लिए बहुत दुखदायक होगा।
लेकिन अगर हम पहले के लोगो की बात करें तो वह सिर्फ और सिर्फ अपने रीति रिवाजों को ही मानते थे और पहले के छात्रों को और नवयुवकों को धर्म के बारे में जानकारी दी जाती है इसी प्रकार से एक महान महिला जिनका नाम मीरा बाई था वह अपनी भक्ति के जरिए बहुत प्रसिद्ध है।
आपने भी मीरा बाई का नाम जरूर सुना होगा और आपके मन में इनसे जुड़े कई सारे सवाल भी होंगे जिनको आप जानना चाहते है तो आज हम आपको अपने लेख में मीरा बाई जीवनी के बारे में बताने जा रहे है जिसके अंतर्गत हम आपको Meera Bai Biography In Hindi से जुड़ी हर एक जानकारी देंगे।
Page Contents
मीरा बाई की जीवनी: Meera Bai Biography In Hindi
नाम | मीराबाई |
जन्म | 1498 ई., कुड़की ग्राम, मेड़ता, मध्यकालीन राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) |
माता | वीर कुमारी |
पिता | रतनसिंह राठौड़ |
पति | राणा भोजराज सिंह (मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र) |
पुत्र | नहीं |
पुत्री | नहीं |
धर्म | हिन्दू |
प्रसिद्धि का कारण | कृष्ण-भक्त, संत व गायिका |
मृत्यु | 1547 ईस्वी, रणछोड़ मंदिर डाकोर, द्वारिका (गुजरात) |
मीरा बाई जो की अपनी कृष्ण भक्ति के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं करती थी और यह सिर्फ कृष्ण की भक्ति में ही लीन रहती थी इन्होंने कृष्ण भक्ति के कारण जहर तक ग्रहण कर लिया था, यह बचपन से ही कृष्ण जी की बहुत बड़ी भक्त है जिस वजह से यह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी और अपने अंतिम समय में भी कृष्ण की भक्ति में ही समा गई।
इनका मन जब सभी सांसारिक दुखों से भर गया था और इनकी सहनशीलता खत्म हो चुकी थी तो इन्होंने कृष्ण भक्ति में अपना सारा जीवन सौप दिया और भागवत भजन में लीन होकर नृत्य करने लगी और अंत में इनकी भक्ति को देखते हुए कृष्ण जी ने इनको द्वारिका के गिरधर में समा लिया।
मीराबाई का प्रारंभिक जीवन परिचय
मीराबाई जी के बचपन का नाम पेमल था तथा इनका जन्म 1498 ई. को राजस्थान के मेड़ता के पास के कुकड़ी नामक गांव में हुआ था, इनके पिता जी का नाम रतन सिंह और इनके दादा जी का नाम राव दूदा था।
जैसा की मेने आपको ऊपर बताया है की यह बचपन से ही कृष्ण की भक्ति में लीन रहती थी तो यह बचपन से ही कृष्ण जी की भक्ति में गिरधर भगवान जी को स्नान कराती, खाना खिलाती, उठाती और हर रोज पूजा करती थी, और सबसे खास बात की जिन गिरधर भगवान की यह इतनी पूजा किया करती थी वह मूर्ति इनको एक साधु के जरिए मिली थी।
इनके बचपन की खुशी का कारण सिर्फ और सिर्फ कृष्ण भक्ति ही थी किंतु इनकी माता जी का देहांत इनके बचपन में ही हो गया था और इनके पिता जी अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे, जिस कारण से इनका पालन पोषण सही से नही हो पा रहा था इसी वजह से इनके दादा जी ने इनको अपने पास बुला लिया था।
मीराबाई जी का विवाह
आपको जानकर हैरानी होगी की बचपन में मीराबाई जी ने अपनी माता जी से गिरधर को उनका पति कहते हुए सुना था जो की सिर्फ एक मजाक का विषय था किंतु इन्होंने उसको सच मान लिया और अपना सारा जीवन अपने गिरधर को ही सौप दिया और उनकी भक्ति में ही लीन रहने लगी।
हालांकि इनका वास्तविक विवाह 1573ई. में मेड़ता के महाराजा सांगा के बड़े पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था, इनके विवाह के पश्चात इनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो गया और यह खुश भी रहने लगी किंतु कुछ समय के पश्चात इनके पति कुंवर का देहांत हो गया और यह एक विधवा का जीवन व्यतीत करने लगी।
मीराबाई पर हुए अत्याचार
जैसा की मेने आपको बताया है की यह एक विधवा का जीवन व्यतीत करने लगी और उसके बाद यह अपनी कृष्ण भक्ति में लीन होकर मंदिर में नृत्य करने लगती थी और कृष्ण की भक्ति करती रहती थी इनके इस नृत्य और इनके व्यवहार से महाराजा सांगा को लज्जित महसूस होता था।
जिस वजह से महाराजा सांगा ने अपने दोनो पुत्रों को मीराबाई को मारने का आदेश दिया जिस वजह से इनके दोनो पुत्रों ने मीराबाई को मारने के लिए तरह तरह के प्रयास किए लेकिन मीराबाई पर इनके अत्याचार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा यहां एक की इनको जहर तक पिलाया गया फिर भी गिरधर जी ने इनके जहर को अमृत में बदल दिया।
मीराबाई जी की मृत्यु
यह अपनी कृष्ण भक्ति के चलते द्वारिका के रणछोड़ भगवान की भक्ति में लीन रहने लगी और उस मंदिर में ही अपना जीवन यापन करने लगी और 1546 ई. में इनका देहान्त हो गया और इस प्रकार से यह अपने जीवन के शुरुवात और अंत तक सिर्फ और सिर्फ कृष्ण भक्ति में ही लीन रहती थी और अंत में भी गिरधर को ही अपने प्राण सौप दिए।
निष्कर्ष
आज के आर्टिकल में हमने आपको के बारे में डिटेल में जानकारी देने का प्रयास किया है। हमें उम्मीद है, की हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको पसंद आई होगी। यदि किसी व्यक्ति को हमारे इस आर्टिकल से जुड़ा हुआ कोई सवाल है। तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है।